Tuesday, July 31, 2018

शहीद उधम सिंह की गौरव गाथा

शहीद उधम सिंह 
नमस्कार दोस्तों ,
दोस्तों , हम आज के समय में हर एक त्यौहार को याद रखते है और उन्हें बड़े धूमधाम से भी मनाते है।  लेकिन हम उन क्रांतिकारों के बलिदानो को भूल जाते है जिनकी वजह से हमे यह त्यौहार मनाने की आजादी मिली है। 
हमारे देश में बहुत से क्रन्तिकारी हुए है जैसे की भगत सिंह , राजगुरु , सुखदेव ,चन्दर सेखर आजाद जैसे ओर भी बहुत से क्रन्तिकारी थे । इन्ही क्रांतिकारिओं में से एक क्रान्तिकार थे शहीद उधम सिंह। तो दोस्तों आज 31 जुलाई है ओर हम इसे शहीद उधम सिंह जयंती के नाम से मनाते है। तो चलिए आज हम शहीद महान क्रांतिकारी उधम सिंह के क्रन्तिकारी जीवन के बारे में जानते है। 



       शहीदो की चिताओ पर लगेंगे  हर वर्ष  युही मेले , 
                      

    वतन पर मर मिटने वालो का बाकी  यही निसा होगा 



शहीद उधम सिंह जिनके बचपन का नाम शेर सिंह था। इनका जन्म 26 दिसंबर ,1899 में पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में हुआ था।  उनके पिताजी श्री टहल सिंह कम्बोज रेलवे में वॉचमन थे।  उधम सिंह का एक बड़ा भाई मुक्ता सिंह था। शहीद  उधम सिंह का जीवन बहुत कठिनाईओं में गुजरा।  सन 1901 में उधम सिंह की माता और 1907 में उनके पिताजी का निधन हो गया। इसके बाद दोनों भाइयों ने एक अनाथालय में शरण ली। वहां पर दोनों भाइयों को नए नाम मिले शेर सिंह को उधम सिंह और मुक्ता  सिंह को  साधु  सिंह। आगे चलकर  सन 1917 में उनके बड़े भाई साधु सिंह (मुक्ता सिंह ) का देहांत हो गया। अब उधम सिंह पूरी तरह से अनाथ हो गया था।  बड़े भाई के देहांत के बाद उधम सिंह ने अनाथलय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। अनाथ होने के बावजूद उधम सिंह जी विचलित नहीं हुए। इसी दौरान उनका संपर्क भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारों से हुआ। क्रन्तिकारी  गतिविधियों के कारन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर  लिया ओर उधम सिंह चार सालों तक जेल में ब्रिटिश हुकूमत की यातनाये सहते रहे।  तब उनहोंने  अमृतसर में ही एक लकड़ी की दुकान शुरू की ओर अपना नाम राम मोहमद सिंह आजाद रख लिया। यह नाम उधम सिंह ने इसलिए रखा क्युकी इस नाम में सभी धर्मो के नाम समाहित थे। 

जलिया वाला बाग हत्याकांड 
भारत में रोलट एक्ट की वापसी के लिए 6 अप्रैल ,1919 को एक विषेस दिवस के रूप में मनाया गया व् सभी समुदायों के लोगो ने रामनवमी का त्यौहार राष्ट्रीय एकता पर्व के रूप में मनाया। यह सब देखकर ब्रिटिश सरकार  बोखला गयी।  10 अप्रैल को अंग्रेजो ने डॉ. सचिआनंद और डॉ किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया।  उनकी गिरफ्तारी पर लोगो ने ब्रिटिश सरकार  के खिलाफ शांतिपूर्वक झुलुस निकाला  पर अंग्रेजो को ये भी रास न आया और उन पर गोलियां चला दी जिसमे बीस लोग मारे  गए और कई लोग घायल हो गए।  इस पर जनता ओर भी भड़क गयी और लूट-पाट ,तोड़-फोड़ और आगजनी जैसी घटनाये शुरू करदी। जो भी अंग्रेज रास्ते  में आया मार  दिया गया।  इससे अंग्रेजी सरकार  हिल गयी।  इस पर ब्रिटिश सरकार  ने 144 धारा  लगा दी।  11 व् 12 अप्रैल को सारा शहर बंद रहा। ब्रिटिश सरकार  के कानूनों का विरोध करने के लिए 19 अप्रैल , 1919 को जलिया वाला बाग़ में एक सभा का आयोजन किया जिसमे बहुत संख्या में बच्चे ,महिलाये भी शामिल थी।  यह देखकर ब्रिटिश सरकार ने जनरल डायर को वहां भेजा। जनरल डायर सेना और हथयारों के साथ वहां पहुंचा। डायर ने वहां पहुंच कर प्रवेश द्वार और सभी द्वार जिनसे बाहर  निकला जा सके सबको बंद कर  दिया और अचानक निहथे लोगो पर गोलियां चलानी शुरू करदी। इससे लोगो में भगदड़ मच गयी।  कुछ लोग गोलियों से मर गए और कुछ भगदड़ में मर गए।  कुछ लोगो ने  बचने के लिए कुए में कूद कर  अपनी जान दे दी।  इस भीड़ में हजारो बच्चे  और महिलाये भी मारी  गयी। उस समय उधम सिंह बाग  में अपने दूसरे साथियों के साथ पानी पिलाने की  सेवा  कर रहा था। इस घटना ने उधम सिंह के दिल में एक गहरा घाव कर दिया और उसने खून से रंगी मिटी को  माथे से लगाकर बदला लेने की कसम खाई।  इसके पश्चात जनरल  डायर वापस लन्दन चला गया और यहां से उधम सिंह का डायर से बदला लेने का मिशन शुरू  हो जाता है। 

उधम सिंह का जनरल डायर से बदला 

                  उधम सिंह के दिल में बदले की आग जल रही थी। इसके बाद उधम सिंह किसी तरह कई देशो से होता हुआ लन्दन पहुंचा।  वहा वह इंडिया हाउस में रहने लगा।  वह वहां इसलिए ठहरा  ताकि जनरल डायर  का पता लगा सके।  आख़िरकार  13 मार्च ,1940 को उधम सिंह को वह अवसर मिला जिससे वह अपनी भारत माता के अपमान का बदला ले सके। 13 मार्च को रॉयल सेंट्रल एशियाई सोसाइटी की लन्दन के कॉक्सटन हॉल में बैठक थी जिसमे माइकल डायर  भी मौजूद थे।  उधम सिंह भी उस दिन उस बैठक में पहुंच गया और रिवाल्वर को पुस्तक के पन्नो में छिपा ली। पुस्तक के पन्नो को इस तरह से काटा की उसके अंदर रिवाल्वर आसानी से छिप सके। 
दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने जनरल डायर पर गोलियां चला दी। दो गोलियां डायर  को लगी जिससे जनरल डायर मारा गया। उधम सिंह ने वहां से भागने की बजाए निडर हो कर वहां खड़ा होकर अपनी गिरफ्तारी देदी।  फिर उन पर मुकदमा चला और 4 जून , 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुना दी गयी। 
   

भारत के इस महान सपुत , महान क्रन्तिकारी ने बड़े गर्व और शान से कहा कि -- मुझे मौत की सजा की कोई परवाह नहीं है क्योंकि मेने भारतमाता के अपमान का बदला ले लिया है ओर 31 जुलाई ,1940 को पेंटनविले जेल  (लन्दन ) में हस्ते -हस्ते फांसी पर  झूल गया। ऐसे क्रन्तिकारी शहीद उधम सिंह को सत -सत  नमन। 


ये थी हमारे शहीद उधम सिंह की गौरव गाथा। अगर दोस्तों हमारे अंदर थोड़ी सी भी देशभगति बची है तो इसे शेयर करे। 
धन्यवाद। 
कुलबीर सिंह  





2 comments:

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